भाषा नियमों द्वारा नियंत्रित सम्प्रेषण का माध्यम भर नहीं,  बल्कि हमारी सोच, सत्ता और समता के सन्दर्भ में हमारे सामाजिक संबंधों को निर्मित भी करती है। बच्चा अपने बाल्यावस्था में ही जब एक से अधिक भाषाओं  में भाषिक क्षमता हासिल कर लेता है तो उससे यही निष्कर्ष निकलता है कि हम शायद भाषा क्षमता लिए ही जन्म लेते हैं । पर भाषा अपने आप में ही परिवर्तनशील होती है और अलग-अलग उम्र के समूह के द्वारा सन्दर्भ के अनुसार अलग-अलग ढंग से प्रयुक्त की जाती है। मानव ,भाषा के बिना नहीं चल सकता क्योंकि यह सम्प्रेषण का सबसे ज़्यादा शुद्ध और सार्वभौमिक माध्यम है। साथ ही भाषाएं देश काल के अनुसार  लगातार बदलती रहती हैं। इस भूमिका के साथ मैं यह कहना चाहता हूँ कि हमारा देश जो एक बहु भाषा भाषी देश हैं, यहां किसी एक भाषा का आधिपत्य स्वीकारना थोड़ा कठिन ज़रूर हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अस्मिता के लिए एक सार्वत्रिक भाषा का होना आवश्यक है। संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा में राज्य को संबोधित करने का अधिकार प्रदान करता है।  धारा 350 A में,  प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए भाषिक अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को उनकी मातृभाषा में पठन-पाठन की बात की गई है।  इस बात की ओर ध्यान देना होगा कि 8 वीं अनुसूची का शीर्षक ‘भाषाएँ ‘ है। इस में शामिल भाषाओं की संख्या 14 से 22 हो गई। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई भी भाषा, जो देश में कहीं प्रयुक्त हो रही है,  वैधानिक रूप से 8 वीं अनुसूची का भाग हो सकती है ।

एक भाषा का विकास दूसरी भाषा के विकास में सहायक होता है और मेरा  मानना है कि भावना प्रद क्षेत्रीय भाषाएँ , राष्ट्रीय स्वाभिमान और एकता की भाषा हिन्दी और अंतरराष्ट्रीय स्तर की भाषा अँग्रेजी को भी साथ लेकर हिन्दी हम सब को एकता के सूत्र में पिरो सकती है।
हिन्दी दिवस के इस शुभ अवसर पर मैं , आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यावाद ।